तलाक बिल को रोके : महिलाओं को गुलाम बनाने की साजिश है यह बिल
हमारे देश की सरकार एक बिल लाने जा रही है, उसके अनुसार अब अगर पति-पत्नी में नही बनती है तथा ऐसा लगता है की संबंध इस हद तक बिगड गये हैं कि सुधार की कोई संभावना नही हE , तो कोई भी आराम से तालाक दे सकता है। पढने में यह ठिक लग रहा होगा लेकिन मैं बताता हूं , यह बिल कितना घातक हैं, यह न सिर्फ़ महिलाओं पर अत्याचार का एक नया रास्ता खोलेगा बल्कि उसे संपति और बच्चों पर उसके अधिकार से भी वंचित कर देगा । हमारे देश के कानून में पहले से हीं यह प्रावधान है की अगर पति- पत्नी आपसी सहमति से तलाक लेना चाहें तो ले सकते हैं। हिंदु विवाह अधिनियम १९५५ की धारा (१३ बी ) सिर्फ़ यह हीं रुकावट है की शादी के एक वर्ष के अंदर तलाक की अर्जी नही दि जा सकती है । लेकिन अगर दोनो के सामने कोई बहुत बडी मजबुरी है तो एक साल के अंदर भी न्यायालय की अनुमति से तलाक की अर्जी दी जा सकती है । न्यायालय छह माह का समय देता है , दोनो को अपने निर्णय पर पुन: विचार के लिये , उसके बाद तलाक मंजूर कर लेता है । अब प्रश्न यह है की सरकार क्यों चाहती है तलाक को सुगम बनाना । इसका फ़ायदा क्या है ? यह तर्क न्यायसंगत नही लगता की अगर शादी को निभाना कठिन हो और सुधार की कोई संभावना न दिखे तो यह भी तलाक का आधार हो। तलाक के जो कारण हो सकते हैं , उनमें सबसे प्रमुख है , शारिरिक और मानसिक उत्पीडन , हमारे यहां पहले से हीं यह प्रावधान है , उत्पीडन के आधार पर तालाक का। जहां तक विचारों के भेद का संबंध है , वह हमेशा मौजूद रहता है। विचारो में विभिन्नता हो सकती है , लेकिन उसका तलाक से क्या संबंध है ? एक वकील होने के नाते मैंने सैकडौ मुकदमे ्दहेज के और तलाक के लडे हैं। लडके के पक्ष से भी और लडकी के पक्ष से भी । मेरा अनुभव रहा है , मुकदमों का कारण छोटी-छोटी बाते होती हैं, जैसे लडकी का सास-ससुर के प्रति अच्छा व्यवहार न होना। पति को समय पर खाना न देना । बच्चों का ध्यान न रखना । मैके वालों से ज्यादा लगाव होना। आलसी होना। पति के अनुरुप सुंदर न होना। छोटे शहर की होने के कारण आधुनिक समाज के रहन –सहन से परिचित न होना । अंग्रेजी का ग्यान न होना। मार्डन कपडे न पह्नना , दांस पार्टियों में जाने से ईंकार करना , शराब को बुरा मानना , पति के दोस्तों से घुलमिलकर बाते न करना । पति के ईच्छा के विरुद्ध ज्यादा खर्च करना , मुख्यता: यही कारण होते हैं लडके की नाराजगी के । लडकी की नाराजगी का कारण होता है , पति का पत्नी के साथ नौकर जैसा व्यवहार करना , देर से घर आना , छुप-छुप कर लडकियों से बात करना , बिना कारण लडकी के मैके वालों को गाली –गलौज करना , अपने परिवार के कहने पर लडकी के साथ डांट –फ़टकार करना , शराब पिना, घर पर अपने दोस्तों को बुलाकर शराब पिलाना और पत्नी को भी शामिल होने के लिये दबाव देना, पत्नी को पार्टी में मार्डन ड्रेस पहनकर जाने के लिये बाध्य करना , डांस करने और पति के दोस्तों के साथ घुलमिल कर हंस-हंस कर बात न करना , सेक्स में रुचि न रखना । मतलब अधिकांश कारण जो होते हैं , वह इतने छोटे होते है , जिन्हे नजरांदाज करते हुये , बातचीत के माध्यम से दुर किया जा सकता है । कोई भी कारण नही है , नये कानून लाकर तलाक को गुड्डे –गुडियों का खेले बनाने की । ७० प्रतिशत से ज्यादा तलाक के मुकदमे लडकों की तरफ़ से हीं दायर किये जाते हैं। गलती भी लडको की हीं होती है । अगर नये कानून को सही मान लिया जाय तो सबसे पहले मेरी हीं शादी इस दायरे में आयेगी । मानसिक स्तर पर दोनो में बहुत अंतर है । पत्नी जी एम ए हैं लेकिन कम्प्यूटर की दुश्मन । राजनिति की बातें कभी नही करती । शादी के बाद पढाई से दुश्मनी । लेकिन पति जी ने अगर खाना नही खाया तो परेशान , पति को यानी मुझे खाना पसंद नही है तो परेशान , चिंता में हूं तो परेशान , सिगरेट ज्यादा पी तो परेशान , शराब के लिये डंडा लेकर तैयार । लेकिन मैं उसे एक अच्छी पत्नी मानता हूं, न सिर्फ़ मानता हूं, चाहता हूं , हमदोनो की मौत एक साथ हो । कारण मैने बहुत नजदीक से शादियों को टुटते देखा है , नये लडके –लड्कियों के मुकदमें लडे हैं। शादी का नाम हीं समझौता , एक-दुसरे के साथ सामांजस्य बैठाना । नया कानून देश के लिये घातक है , चाय में शकर कम तलाक का केस दायर । छुटे आरोप लगाकर मुकदमे होंगे। अभी तक हमारे देश की सरकार अपराधिक मुकदमों में झुठी गवाही को रोकने में सफ़ल नही हो पायी है , झुठे गवाहों के आधार पर आजीवन कारावास का दंड भोग रहे है लोग । उच्चतम न्यायालय से भी उनकी सजा बरकरार रही है । सच यह है की हमारे देश के कानून और न्यायापालिका के हाथ लाखों निर्दोषों के खुन से रंगे हुये हैं। यही कारण है की मैं न्या्यिक व्यवस्था की खामियों पर लिखता हूं, साक्ष्य है , एक दो नही , सैकडो । एक छोटी सी घटना सुनाकर बंद करता हूं लिखना । एक पति जेल में बंद था आरोप था पत्नी की हत्या कर के लाश गायब कर देने का, दो साल तक जमानत नही मिली , शायद सजा भी हो जाती , लेकिन इसी दरम्यान पत्नी का पता चल गया । उसे जमानत मिल गई । अब आप सोचे । अगर नही पता चलता तो क्या होता । गया –रांची रोड एन एच २ पर एक बिजिनेसमैन को डकैत दिखाकर पुलिस वाले उसकी हत्या कर देते हैं, यह गया जिले के बाराचट्टी थाना क्षेत्र की घटना है, राजेश धवन हत्या कांड । वस्तुत: एन काउंटर होता है, क्योंकि बिजनेस मैन की गाडी का सायलेंसर खराब था , फ़ट से हुई जोरदार आवाज को पुलिस की पेट्रोलिंग पार्टी बिजनेस मैन की गाडी से गोली चलना समझती है , क्षेत्र नक्सल प्रभावित है , दारोगा जी भी टुंच हैं, पिछा करते हैं बिजनेस मैन की गाडी , वह नही रुकती , पुलिस गोली चलाती है , एक आदमी को लग जाती है , नजदीक जाकर देखती है तो पता चलता है यह तो निर्दोष है , अब अपनी जान बचाने के लिये बाकी एक को भी मार देती है। दुसरे दिन काउंटर की खबर फ़ैलाई जाती है , एक दुसरा दारोगा शहर के थाने में पोस्टेड हैं , लेकिन परिवार उसी बाराच्चटी थाने में पुलिस क्वार्टर में रहता है , वह भी इनाम के चक्कर में समझते हैं की सच में कोई ड्कैत मारा गया है, अपने रिवाल्वर से हवा में दो-तीन फ़ायर करते हैं, तथा अपना नाम भी काउंटर करनेवालों की सुची में दर्ज करवाते हैं, हत्या किसी किसान की नही बल्कि एक व्यवसायी की थी चैंबर आफ़ कामर्स सहित ्व्यवसायिक संगठन हंगामा करते हैं जांच होती है, मुकदमा चलता है, उस दारोगा जिसका नाम विक्टर है, सजा होती है , एक और निर्दोष को भी सजा होती है। वह न्यायालय में भी गुहार लगाता है कोई फ़ायदा नही । उसका बीस वर्ष पुरा होनेवाला है। उच्चतम न्यायालय को जेल से चिठ्ठी लिख-लिखकर हार गया कोई फ़ायदा नही । और इसी केस में एक दारोगा को उच्चतम न्यायालय रिहा कर देता है , जो उस हत्या में शामिल था। यह बताने का सिर्फ़ एक हीं कारण है , यह बताना की दुर के ढोळ सुहाना लगता है, बहुत बुरी हालत है न्यायालयों की जज, न्याय नही करते सिर्फ़ अपनी आठ घंटे की ड्यूटी बजाते हैं। अब हम आते हैं तलाक के नये कानून पर । यह कानून महिलाओं की स्थिति को बदतर बना देगा । इसका विरोध करें , हमारे यहा अब किसी भी नये कानून की जरुरत नही है, सिर्फ़ वर्तमान कानून का पालन सही तरीके से हो , इसी की जरुरत है । लाई डिटेक्टर एक साईंटिफ़िक जांच है , हर अपराधी का और गवाह का लाई डिटेक्टर टेस्ट होना चाहिये। इस टेस्ट का उपयोग साक्ष्यों के संकलन के लिये होना चाहिये न की इसके आधार पर सजा के लिये। दुर्भाग्य है , हमारे नये मुख्य न्यायाधीश महोदय ने कहा है की किसी भी आरोपी का लाई डीटेक्टर टेस्ट बिना उसकी सहमति के नही किया जायेगा।
बाकी बाते बाद में