देश के सभी टीवी चैनल , अखबार और वेब पोर्टल अन्ना हजारे के आमरण अनशन को कुछ इस तरह प्रसारित कर रहे है जैसे लोकपाल बिल पास होते हीं देश भ्रष्टाचार मुक्त हो जायेगा । कोई समस्या हीं नही होगी । अधिकांश टी वी चैनल और अखबारों ने शायद यह पढा भी नही होगा की लोकपाल बिल क्या है । सभी सोशल नेटवर्किंग साईट पर अन्ना हजारे के समर्थन में लोग अपना – अपना विचार व्यक्त कर रहे हैं। हम हिंदुस्तानी बहुत भावुक और संवेदनशील होते हैं । तुरंत भावना के ्बहाव में बह जाते हैं। मैं सबसे पहले उस लोकपाल बिल की बात करता हूं , उसके कुछ पहलुओं को यहा दे रहा हूं ताकि आप उसे समझ सके। सर्वप्रथम वर्ष १९६६ में प्रशासनिक सुधार आयोग ने दो स्तरीय तंत्र की व्यवस्था का सुझाव दिया था। केन्द्र के स्तर पर लोकपाल और राज्य के स्तर पर लोकायुक्त । लोकपाल एक त्रिसदस्यीय संस्था होगी । उस संस्था के अध्यक्ष होंगे उच्चतम न्यायालय के सेवानिवर्त मुख्य न्यायाधीश या न्याधीश तथा सदस्य होंगे उच्च न्यायालय के सेवानिवर्त न्यायाधीश । इन सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति एक समिती की अनुशंसा पर करेंगे जिसके सदस्य होंगे उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, होम मिनिस्टर , लोकसभा या राज्यसभा , दोनो सदनों मे से उस सदन के नेता जिसके सदस्य प्रधानमंत्री न हों, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता। लोकपाल कोई भी लाभ का पद सेवानिवर्ति के बाद भी नही ग्रहण करेंगे । लोकपाल के खिलाफ़ कोई भी शिकायत होने की स्थिति में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा दो वरीय न्यायाधीश जांच करेंगे । मैं समझता हूं लोकपाल से संबंधित तस्वीर स्पष्ट हो चुकी है। अब मैं आता हूं अन्ना हजारे जिस लोकपाल बिल को जन लोकपाल जैसा लुभावना नाम देकर ड्रामा कर रहे हैं उस बिल के बारे में । यह जन लोकपाल बिल को तैयार किया है शांति भुषण , प्रशांत भुषण , केजरीवाल, किरन बेदी तथा सेवानिवर्त जज संतोष हेगडे ने। चुकि यह बिल २७ पेज का है इसलिये मैं यहां इसके मुख्य तथ्यों का हीं जिक्र कर रहा हुं। अन्ना हजारे की लोकपाल नामक संस्था द्स सद्स्यीय होगी । सदस्यों का कार्यकाल पांच वर्ष का होगा । लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री, मंत्री, लोकसभा सदस्य, उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के जज और सभी सरकारी सेवक होंगे । यह संस्था भ्रष्टाचार , गलत तरीके से हुये तबादले , न्यायलयों मे केसो के निष्पादन में हो रही देर , अधिकारियों तथा कर्मचारियों की प्रोन्नति में हो रही देर , सरकारी सेवको द्वारा पद के दुरुपयोग सहित भ्रष्टाचार से संबंधित सभी मामलो की जांच करने में सक्षम होगी। अन्ना हजारे ब्रांड का यह जनलोकपाल संस्था के सद्स्यों की नियुक्ति एक चयन समिति की अनुशंसा पर राष्ट्रपति द्वारा की जायेगी। चयन समिति के सदस्यों में उच्चतम न्यायालय के दो जज, उच्च न्यायालय के दो जज, भरतीय मूल के सभी नोबल पुरुस्कार विजेता , अंतिम तीन मैगसेसे पुरुस्कार विजेता । भारत के महालेखाकार , मुख्य चुनाव आयुक्त तथा सेवानिवर्त होनेवाले लोकपाल । चयन समिति देखकर यह स्पष्ट हो जाता है की इसमे जनता का कोई प्रतिनिधित्व नही होगा । इस जन लोकपाल के प्रावधान हीं एक-दुसरे के विरोधाभाषी हैं तथा यह अन्तर्विरोधों से ग्रसित है । सर्वप्रथम यह की जनलोकपाल के जांच के दायरे में उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के जज भी शामिल हैं और वही चयन समिति के भी सदस्य हैं। यानी ये चार सदस्य जो न्यायापालिका से आयेंगे , सबसे पहले तो इस पूर्वाग्रह के साथ चयन करेंगे कि लोकपाल के सद्स्य कोई वैसा व्यक्ति न बने जो बाद में इनके या अन्य मित्र जजों के लिये खतरा साबित हो । उच्चतम न्यायालय के एक रिटायर्ड न्यायाधीश महोदय ने मात्र ८-१० दिन पहले एक गोष्ठी में कहा है कि अगर कोई न्यायाधीश यह कहता है कि वह पुर्वाग्रह से ग्रसित नही है तो यह बकवास है । इस जन लोकपाल बिल को ड्राफ़्ट करने वालों में प्रशांत भुषण भी शामिल हैं जिनके पिता श्री शांति ्भुषण अवमानना के एक मुकदमे में उच्चतम न्यायालय को एक लिफ़ाफ़ा सौंप चुके है जिसमे उन्होनें यह जिक्र किया है की पिछले १०-११ मुख्य न्यायाधिशों में अधिकांश भ्रष्ट थे। लेकिन वह भुषण जी भी हिम्मत नही जूटा सके उन भ्रष्ट न्यायाधिशो का नाम सार्वजनिक करने की । ला कमीशन भी अपनी रिपोर्ट में अंकल जजो का जिक्र कर चुका है यानी भुल जायें न्यायिक निष्पक्षता को , वह सिर्फ़ नजर आती है बहुत हीं संवेदनशील और चर्चित मामलो में। अब आता हूं इसके व्यवहारिक पहलू पर । नियुक्ति के लिये बनी समिति के सद्स्यों को देखकर यह स्पष्ट है की अधिकांश पद वैसे हैं जिनके उपर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। किसी वाद से जूडे रहने और पक्षपात का भी आरोप लगा है । चयन समिति के अन्य सद्स्यों में शामिल हैं भारतीय मुल के नोबल पुरुस्कार विजेता , नोबल पुरुस्कार चुनिंदा क्षेत्र में विशिष्ट खोज के लिये दिया जाता है , इन क्षेत्रों में साईंस , साहित्य, शांति जैसे विषय शामिल है। नोबल पुरुस्कार के पैमाने में ईमानदारी या सार्वजनिक जीवन में स्वच्छ्ता शामिल नही है यानी एक महा भ्रष्ट साईंटिस्ट भी अगर साईंस के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करेगा तो उसे नोबल पुरुस्कार मिलेगा। अब यह अन्ना हजारे हीं बतायेंगे कि नोबल पुरुस्कार विजेता को चयन समिति का सदस्य बनाने का अर्थ क्या है । ठीक यही बात मैगसेसे पुरुस्कार प्राप्त करनेवालों पर लागू होती है । अब चर्चा करता हूं महालेखाकार की , यह विभाग हीं पुरी तरह भ्रष्टाचार से भरा हुआ है । अभी तक कोई महालेखाकार अपने विभाग में भ्रष्टाचार नही खत्म कर पाया वह चयन करेगा लोकपाल का, वाह अन्ना हजारे और संतोष हेगडे जी । चुनाव आयोग निष्पक्ष चुनाव कराने में पूर्णत: अक्षम साबित हो चुका है । ईवीएम मशीन के वोटो को खरीदा जाता है । वोट करवाने जो पोलिंग पार्टी जाती है उसे पैसे दे दिये जाते हैं और वह बोगस वोट मारने की छुट दे देते हैं। सैकडो उदाहरण भरे पडे हैं। ईवीएम में छेडछाड करके पुरी की पुरी विधान सभा गठित की जा चुकी है । हिम्मत नही है चुनाव आयोग की ईवीएम पर रिसर्च कर रहे वैग्यानिकों के प्रश्नो का जबाब दे सके यहां भी मामला महालेखाकार जैसा हीं है । यह बिल सिर्फ़ नाम का जन लोकपाल बिल है इस बिल के निर्माण से लेकर चयन समिति के सदस्यों की योग्यता तक कहीं भी किसी स्तर पर जनता की भागेदारी नही है । लोकसभा, राज्यसभा जैसी संस्थाओं के बजाय विदेशी पुरुस्कार प्राप्त लोग अन्ना हजारे को ज्यादा ईमानदार नजर आ रहे है, वाह मेरे गांधीवादी । जिस गांधी को नोबल पुरुस्कार के योग्य नही माना नोबल पुरुस्कार समिति ने, उस समिति का प्रमाण पत्र चयन समिति का सदस्य बनने की योग्यता होगी, वाह अन्ना हजारे जी , गजब का है आपका गांधीवाद । अन्ना हजारे जी, गांधी की समाधी पर माल्यार्पण करने के बाद जिस अनशन को आपने शुरु किया है और जिस गांधी का नाम भंजा रहे हैं उसी गांधी को अपमानित करनेवाली संस्था के प्रमाण पत्र को चयन समिति का सदस्य बनने की योग्यता मानने को क्या कहा जाय ? अब आता हूं उस तथ्य पर जो इस सारे ड्रामे के पिछे है । पहले शुरु करता हूं प्रशांत भुषण से , उच्चतम न्यायालय में अवमानना के एक वाद में उच्चतम न्यायालय के भ्रष्ट जजों की जो सूची शांति भुषण ने सौंपी थी उसे जनता के सामने उजागर करने की हिम्मत नही हुई और यह श्रीमान चले हैं जन लोकपाल बिल के माध्यम से जनता को उल्लू बनाने। दुसरा नंबर है किरन बेदी, केजरीवाल और संदीप पांडेय का, तीनो मैगसेसे पुरुस्कार प्राप्त हैं , यानी चयन समिति का सदस्य बनने की योग्यता पुरी कर रहे हैं। जज हेगडे भी लोकपाल बनने की योग्यता पुरी कर रहे हैं। जन लोकपाल का उद्देश्य और क्षेत्राधिकार देखकर यह स्पष्ट है की यह न्यायपालिका , ईंवेस्टीगेशिगं एजेंसी तथा प्रशासनिक प्राधिकार का भी कार्य करेगी तथा इसके साथ-साथ न्यायपालिका के जजो के भी खिलाफ़ होनेवाली शिकायतों की जांच करेगी । केन्द्र द्वारा स्थापित सभी संस्थाए भी इसके दायरे में होंगी । अभी हमारे देश में कैट यानी सेन्ट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिबनल , कर्मचारियों के मामले देखती है जिसमे केन्द्रीय सरकार की संस्थाओं में नियुक्ति भी शामिल है , रिटायर्ड जज वहां चेयर पर्सन होते हैं। केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त भ्रष्टाचार के मामले देखते हैं, उसके बाद त्रिस्तरीय न्यायपालिका है । अन्ना हजारे के तथा कथित लोकपाल की नियुक्ति के बाद इन सबकी जरुरत नही होगी । वस्तुत: यह एक समांनातर व्यवस्था है जिसमें जनता की कोई सहभागिता नही होगी । कानून से जूडे रहने के कारण मेरा मानना रहा है कि मुल्क को किसी भी नये कानून या प्राधिकरण की जरुरत नही है , जरुरत है सिर्फ़ वर्तमान कानूनों को लागू करने और प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की । यह जन लोकपाल भ्रष्टाचार को रोकने का नही बल्कि भ्रष्टाचारियों को सजा देने का कार्य करेगा । अभी भी सजा देने की व्यवस्था है , मुकदमों के निष्पादन की समय सीमा भी है लेकिन सबकुछ रहते हुये भ्रष्टाचार नही मिट पा रहा है । जनता में भ्रष्टाचार के खिलाफ़ उन्माद के स्तर तक आक्रोश है , उबल रही है जनता गुस्से में । आपातकाल के समय भी यही स्थिति थी । जनता का यह गुस्सा बदलाव लायेगा अगर इसका रुख दुसरी तरफ़ नही मोडा गया । अभी इसे उबलते रहने देना है लेकिन अन्ना हजारे का यह आंदोलन खत्म कर देगा जनता के गुबार को , यह सीमित कर देगा जनलोकपाल के गठन तक , मर जायेगा जन आंदोलन । अभी जरुरत थी इस आक्रोश को जिंदा रखने की । २ जी घोटाला, आदर्श घोटाला, कामन वेल्थ घोटाला तथा काला धन के मुद्दे पर एक सार्थक काररवाई न्यायालय स्तर पर हो रही है । जरुरत है सिर्फ़ निगरानी की ताकी भटकाव न आये जांच में। अब इस स्तर पर जन लोकपाल के नाम पर जनता के गुस्से को , मात्र एक प्राधिकरण या एक संस्था के निर्माण तक सीमित कर देने का अर्थ होगा अप्रत्यक्ष रुप से भ्रष्टाचार को मजबूती प्रदान करना। यह आंदोलन कुछ चुके हुये लोगों द्वारा शुरु किया गया है ये सारे लोगों को बहुत दिनों से कोई रोजगार नही मिल रहा था। अन्ना हजारे का आंदोलन उससे जूडे लोगो के स्वार्थ की पुर्ति करने के अलावा कुछ नही करेगा। यह जन लोकपाल न्यायपालिका , कार्यपालिका , जांच एजेंसी और प्रजांत्रिक व्यवस्था को खत्म कर के रख देगा। इसके प्रावधानो के अनुसार यह जांच एजेंसी से लेकर सजा देने तक का सब काम करेगा। यानी पुलिस से लेकर जज सबकुछ लोकपाल होगा । अभी तक जो खबरे आ रही हैं उससे यह स्पष्ट हो रहा है की विभिन्न जिले तथा राज्यों में इस आंदोलन के समर्थन मे जो संस्थाये तथा लोग खडे हो रहे है वह खुद भ्रष्टाचार में लिप्त है , अगर इस आंदोलन का कोई संगठनात्म ढांचा तैयार होगा तो ये सारे लोग उसका हिस्सा होंगे जैसे जयप्रकाश जी के संपूर्ण क्राति वाले आंदोलन के साथ हुआ था। देश एक बहुत बडी मुसिबत में फ़ंसने जा रहा है ।
बाकी बाते बाद में
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2 टिप्पणियाँ:
आप चले जाओ.. आप ही कुछ अच्छा करो.. आप ही समिति में सदस्य बन जाओ.. उनका अनशन ड्रामा है, आप यथार्थ वाला करो... लेकिन करो तो सही...
जिन्होंने अपनी ज़िंदगी में कभी कुछ नहीं किया वो ऐसी ही बातें करते हैं...पहले कुछ करो फिर किसी को ड्रामा कहना...ब्लॉग तो कोई भी बना और लिख सकता है...घर से बहार निकलो और कुछ करो वरना मेंढक की तरह पड़े रहो...निकम्मे लोग दूसरों को ऐसा ही कहते हैं जैसा आप कह रहे हो...
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