अन्ना हजारे का कद इस आंदोलन के बाद बहुत बडा हो गया है उन्होने मुख्यमंत्रियों को प्रमाण पत्र बाटना शुरु कर दिया है लेकिन पहले अन्य बातों का जिक्र करुंगा उसके बाद आउंगा प्रमाण पत्र पर ।
सबको मालूम है मैं शराबी नही, कोई पिलाये तो मैं क्या करुं। कुछ इसी तर्ज पर चल रहा है यह सारा ड्रामा । मैं गांधीवादी हूं, अब कोई मुझे भ्रष्ट बना दे तो मैं क्या करुं। आजतक यह मुल्क नही जान पाया कि नेहरु के लिये गांधी जी की कमजोरी का राज क्या था ? वह कौन सा कारण था जिसके कारण गांधी जी सुभाष चन्द्र बोस को कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटाने के लिये परेशान हो गये थें और अन्तोगतवा हटाकर हीं दम लिया । बजाज और बिरला को सुभाष चन्द्र बोस से क्या दुश्मनी थी ? सुभाष चन्द्र बोस में क्या खामी थी ? ठीक वैसा हीं प्रश्न आज फ़िर खडा हुआ है । इस बार भी हथियार वही अनशन का है । सरकार और अन्ना के बीच समझौता हो गया लेकिन प्रश्न अभी भी कायम है । जब टूजी घोटाले में अहम खुलासे हो रहे थें और कुछ नामी बिजनेसमैन तथा पत्रकार उसकी चपेट में आ चुके थें तथा कानून को जानने वाले यह अनुमान लगा रहे थें कि बहुत जल्द कुछ सनसनीखेज गिरफ़्तारी होगी , सी बी आई के द्वारा ए राजा के खिलाफ़ चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है , अभी उस चार्जशीट पर चर्चा करने की जरुरत थी , यह देखना था कि सीबीआई ने सही तरीके से साक्ष्य ईकठ्ठे किये हैं या मनमोहन सिंह या अन्य मंत्रियों के खिलाफ़ साक्ष्य आये है या नही, करुणानिधी और उनके कुनबे के खिलाफ़ क्या साक्ष्य सीबीआई ने ईकठ्ठे किये है ? लेकिन ठीक उसी वक्त अन्ना का यह ड्रामा जो पूर्व घोषित था शुरु हुआ । पांच दिन तक चलने के बाद इस ड्रामे का पहला एपिसोड खत्म हुआ । अन्ना के इस समझौते में आमजन की हार हुई और एलीट क्लास जन की जीत यानी ८-१० लोग जो खुद को सिविल सोसायटी कहते हैं उनकी जीत हुई । इसमे सरकार नही झुकी , अगर कोई झुका, टुटा तो इस देश की आम जनता जिसके प्रतिनिधी बन गये एलीट क्लास के कुछ लोग । अन्ना के इस पुरे आंदोलन को मैं एक धोखा मानता हूं, देश के करोडो लोगों को छलने का पाप । एलीट क्लास के कुछेक लोग जो सिविल सोसायटी का लबादा ओढकर पुरे देश की जनता के घोषित (अघोषित नहीं क्योकि उन्होने शुरुआत हीं की जन लोकपाल नाम से ) प्रतिनिधि बन बैठे। यह पुरा ड्रामा देश की जनता का भ्रष्टाचार के खिलाफ़ बढ रहे आक्रोश को खत्म करने या कम से कम शांत करने के लिये था और वही हुआ । लेकिन इस ड्रामे के कारण ई्मानदार पत्रकारों की जिम्मेवारी बढ गई । किसको बचाने के लिये अन्ना का ड्रामा शुरु हुआ था , यह पता लगाना पत्रकारों का दायित्व है । दुसरी बात जो पांच नाम अपने चहेतों के अन्ना ने सुझाये है , लोकपाल के सदस्य के रुप में उनकी असलियत को जनता के सामने लाना जरुरी है । शांति भुषण , प्रशांत भुषण यानी डायनेस्टी यहां भी । हेगडे , केजरीवाल तथा खुद अन्ना । ये वह नाम है जो अभी तक प्राप्त सुचना के अनुसार अन्ना ने दिये हैं। सबसे पहले मैं बखिया उधेडता हूं , अन्ना के ड्रामे का । पारदर्शिता की बात करने वाले अन्ना ने सरकार के नुमायंदो से सारी बाते बहुत हीं गुप्त तरीके से की । क्या-क्या बाते हुई किसी को नही पता । सिर्फ़ अन्ना के दूत और सरकार के प्रतिनिधी जानते हैं । यह कैसी पारदर्शिता थी माननीय अन्ना जी। जो लोग सहानुभुति दिखाने के लिये बोट क्लब पर जमे थें उनको अंधेरे में क्यों रखा ? सरकार और अन्ना के दूतों के बीच क्या चल रहा है उसे पुरी परदर्शिता के साथ उन समर्थको को क्यों नही बताया ? सहमति के पहले देश की जनता से राय क्यों नही ली ? अब आता हूं अन्ना के द्वारा प्रस्तावित नामों पर । केजरीवाल के बारे में मैं इसके अलावा ज्यादा नही जानता की वह भारतीय रेवन्यू सेवा में थें और बहुत सारे मलाईदार पद पर रह चुके हैं। इस एलीट बिल के परिभाषा वाली धारा २ में परिभाषित व्हिसल ब्लोअर वाला प्रावधान केजरीवाल की देन है जिसके तहत सरकारी सेवक यानी आला अधिकारियों के तबादले, प्रोन्नति, उनके खिलाफ़ विभागीय कारवाई जैसे मसले की सुनवाई भी लोकपाल के दायरे में आयेगी पह्ले इसके लिये कैट की व्यवस्था थी और कैट के खिलाफ़ अभी तक भ्रष्टाचार की बहुत कम शिकायते सामने आई है । कैट के कुछ फ़ैसले तो बहुत हीं अच्छे माने गये है , उन फ़ैसलों में से एक रहा है सरकारी ठेके में काम कर रहे मजदुर को भी कैट ने केन्द्र सरकार के अधीन काम करनेवाला मानते हुये क्षतिपुर्ति का आदेश दिया था। अब अन्ना ब्रांड एलीट लोकपाल लागू हो जाने के बाद कैट की कोई जरुरत नही रह जायेगी या फ़िर कुछेक मामलों की सुनवाई लोकपाल हीं करेगा । किसी भी अधिकारी पर कोई भी विभागीय कारवाई होगी तो वह इसे पूर्वाग्रह से ग्रसित कहते हुये लोकपाल का दरवाजा खटखटाना शुरु कर देगा । खैर अब तो एक नई समिति नये सिरे से लोकपाल बिल ड्राफ़्ट करेगी और उस समय देखा जायेगा की यह तिसरा मिलाजुला लोकपाल बिल क्या है । मैं केजरीवाल के बारे में प्रभाष जोशी द्वारा कही गई बातों के अलावा कुछ विशेष नही जानता इसलिये उनके चरित्र और कार्य के बारे में फ़िलहाल कोई टिपण्णी नहीं करुंगा . अन्ना हजारे के बारे में बहुत कुछ पढ चुका हूं, सुन चुका हूं और महारा्ष्ट्र के कुछेक मित्रो ने भी बताया है , सबकुछ ठिकठाक तो नही है फ़िर भी अभी और तहकिकात कर रहा हूं, इसलिये उनके उपर भी कोई टिपण्णी नही करुंगा । अब बच गये जज संतोष हेगडे , शंति भुषण और प्रशांत भुषण तो इन तीनो महानुभावो को लोकपाल ड्राफ़्ट बनाने वाली समिति का सदस्य बनाने का मैं विरोधी हूं। इस देश का कोई न्यायाधीश यह नही कह सकता कि उसने निर्दोष को सजा नही दी है , कारण है न्यायिक व्यवस्था । संतोष हेगडे उच्चतम न्यायालय तक पहुचे है , बहुत पाप करने के बाद हीं वह मुकाम हासिल होता है , अपने से सिनीयर जजो की चमचागिरी, तरक्की के लिये निर्दोषो को सजा देने जैसे कार्य को सीढी की तरह ईस्तेमाल किया जाता है । सतोष हेगडे सदस्य बनने की योग्यता नही रखते । शांति भुषण तथा प्रशांत भुषण को सबसे पहले यह बताना पडेगा कि कितना इनक्म टैक्स की चोरी किये हैं। इनकम टैक्स की चोरी सभी बडे वकील करते हैं। फ़िस की कोई रसीद तो दी नही जाती । चुकिं मैं स्वंय प्रशांत भुषण से एक मुकदमा जो मेरे क्लायंट का था , उसके संबंध में बात कर चुका हूं। फ़िस की बात तो छोड दे किसी बनिया से भी बडे बनिया हैं प्रशांत जी । दोनो पिता-पुत्र भी सदस्य बनने की योग्यता नही रखते। २५ हजार से लेकर ४० हजार तक फ़िस का दायरा है प्रशांत भुषण का। वह भी तब जब एसएलपी की ड्राफ़्टिंग दुसरे ने कि हो । दुसरी बात दोनो भुषण से ज्यादा योग्य और काबिल तथा ईमानदार वकील उच्चतम न्यायालय में हैं जो वास्तव में लोकपाल बिल को ड्राफ़्ट करने की योग्यता रखते हैं, वेणु गोपाल से लेकर सोली सोराब जी जैसे अनेको नाम हैं । एक और बहुत बडी गलती शांति भुषण ने की है । अवमानना के एक मुकदमे में जो उनके पुत्र के उपर उच्चतम न्यायालय में चल रहा है , उसमे एक बंद लिफ़ाफ़ा उच्चतम न्यायालय में दाखिल किया था । उस लिफ़ाफ़े में उच्चतम न्यायालय के भ्रष्ट जजो का नाम था , आज तक हिम्मत नही हुई उन नामों को उजागर करने की । कारण सिर्फ़ न्यायालय का डर । जो आदमी इतना कायर हो कि कोर्ट के डर से भ्रष्टाचारियों का नाम नही उजागर करे वह किसी भी स्तर पर जन आंदोलन से जुडने की योग्यता नही रखता । अब यह अन्ना के उपर है वे इन तीनो का नाम वापस लेते हैं या इनको योग्य होने का प्रमाण-पत्र देते हैं ।वैसे अन्ना अब ्मुख्यमंत्रियों को भी प्रमाणपत्र देने लगे हैं। हालाकि अन्ना के प्रमाण –पत्र देने के बाद भी मैं खिलाफ़ ही रहुंगा । मैने अन्ना को एक पत्र लिखना शुरु किया था जिसमे कुछ सवाल थें परन्तु अन्ना ने अनशन तोड दिया इसलिये अब उस पत्र में कुछ संशोधन के साथ अन्ना को भेजुंगा। जवाब तो देना ही होगा । मेरे जैसे लोग भेड नही बन सकते और भेड से अलग मानसिकता वाले करोडो लोग है इस मुल्क में। पत्रकारों से एक ही गुजारिश है , वे अनशन के पिछे का सच को सामने लाये । इसके लिये बहुत मेहनत की जरुरत नही है । दिल्ली में बैठा कोई भी ईमानदार पत्रकार यह कर सकता है । बस आप टेंट से लेकर सारा साजो सामान जो लगा था धरना स्थल पर वह किसने लगवाया तथा उसका भुगतान किसने किया यह पता लगाना शुरु कर दे सच सामने आ जायेगा। एक और ड्रामे का जिक्र भी यहां कर देता हूं हालांकि उसका इस पुरे प्रकरण से कोई नजदीक का रिश्ता नही है बस सिर्फ़ रोटी सेकने और अपने मुह मियां मिठ्ठु बनने वाली बात है । चुकी मेरे खुद के राज्य बिहार से जुडा है इसलिये जिक्र कर रहा हूं वरना जरुरत भी नही थी । बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने बडे जोश- खरोश के साथ स्वागत किया अन्ना का और अपने बयान में कहा कि बिहार भ्रष्टाचार विरोधी कानून बनाने वाला पहला राज्य है , उन्होने अन्य राज्यों से इसी तरह का कानून बनाने की अपील की है । बिहार में एक अधिकारी है आइ ए एस हैं फ़िलहाल पटना के कमिश्नर हैं नाम है के पी रमैया । यह बिहार के भ्रष्टम अधिकारियों में से एक है । इसने सरकार की जमीन को भी निजी हाथ में सौपने का काम किया है । मैं एक बार नही दसियों बार नीतीश को ईमेल भेजकर इसके खिलाफ़ जांच की मांग कर चुका हूं। इस पाखंडी नीतीश की हिम्मत नही हुई जांच कराने की । आज भी मैं अपने मांग पर डटा हुआ हूं । सीबीआई से के पी रमैया के खिलाफ़ जांच कराओ । मेरे पास बहुत सारे तथ्य भी हैं । नीतीश को भी अन्ना ने ग्राम सभा के क्षेत्र में काम करने के लिये प्रमाण पत्र दिया है । अन्ना के प्रमाण-पत्र की बात पढकर मुझे बहुत हंसी आई और अन्ना की बुद्धि पर तरस भी आया । बिहार में ग्राम सभा लूट का सबसे बडा केन्द्र बन चुकी है। नरेगा , आंगनबाडी, राशन दुकान , शिक्षको की बहाली जैसे कार्यों में सिर्फ़ भ्रष्टाचार है । सारे मुखिया भ्रष्ट हैं । अन्ना को मेरी चुनौती है , मात्र ५० मुखिया बताओ जो आपको को भ्रष्टाचारी न लगे अन्यथा यह बताओ की आपने किस आधार पर बिहार की ग्राम सभाओं की प्रशंसा की । अन्ना हजारे जी आप बुजुर्ग हैं , आपने बहुत सारे अच्छे और प्रशंसनीय सामाजिक कार्य किये हैं लेकिन मैं उन गदहे मे से नही हूं जो आंख मुंदकर आपकी सभी वाहियात और फ़ालतू की बातों पर विश्वास कर ले । आगे से मेरी नसीहत है इस तरह की तथ्यहीन बात न करे अन्यथा आप हंसी के पात्र बनकर रह जायेंगे । अब बंद करता हूं फ़िर मिलेंगे जब शुरु होगा अन्ना का अगला एपीसोड । अन्ना के आंदोलन की मार्केटिंग भी शुरु हो चुकी है । एक टी शर्ट बनाने वाली कंपनी का अन्ना ब्रांड शर्ट की तस्वीर दे रहा हूं ।
बाकी बाते बाद में
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