अक्सर सडकों पे हादसे होते हैं। कोई महिला मोटर साईकिल पर पीछे बैठी हुई हों और धक्का लग जाय गिर पडे , लोग आयेंगे मदद का हाथ लेकर , अगर चोट ज्यादा हो तो दो-चार कार वाले अस्पताल ले जाने के लिये भी मिल जायेंगे । अस्पताल में खुन की जरुरत हो वह भी देने के लिए व्यक्ति या संस्था जैसे रोटरी, लायन्स , रेड क्रास , चैम्बर आफ़ कामर्स सामने आयेंगे। यह सब देखने के बाद हम कहते हैं , मानवता जिंदा है। उपर की तस्वीर एक महिला भिखारिन की है। जगह है बिहार के गया शहर का मुख्य बाजार , चैक टावर के नजदीक स्थित किरन सिनेमा हाल के सामने । बीच सडक पर यह महिला गिरी पडी है , माथे पे चोट भी है, कमर से नीचे आधा बदन नंगा है। सुबह ९-९:३० के बीच अखबार की रिपोर्टिंग के लिए ग्रामीण क्षेत्र के लिये निकला था। इस महिला को देखा , जिलाधिकारी को फ़ोन लगाया कि कम से कम अस्पताल भेजवाने की व्यवस्था हो सके ४-५ बार रिंग होने पर भी उन्होनें मोबाईल नही उठाया। सिविल सर्जन का भी फोन नही लगा , अंत में सदर एस डी ओ गया परितोष कुमार को फोन लगाया , उन्होनें फोन उठाया , सारी बातों को सुना फिर कुछ देर बाद स्वंय फोन कर के बताया थाना एवं स्वास्थ्य विभाग को उन्होनें आदेश दिया है उक्त महिला को अस्पताल ले जाकर भर्ती करें । सुखद अहसास हुआ एक नौकरशाह का मानवीय चेहरा देख कर लेकिन तकलीफ़ हुई आते-जाते लोगो की संवेदनहीनता पर । अगर वह महिला भिखारिन, गरीब न होकर किसी खाते -पीते यानी हम आप जैसे के घर कि होती तो हल्की चोट लगने पर भी लोगों की मानवता हिलोरे मारती नजर आती । यही है मानवता का अलग - अलग रुप ।
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