हिन्दुस्तान की पुलिस और आई पी एस आतंकवादियों से भी बुरे हैं ।

7 Nov 2010



 ईस देश का कोई भी सभ्य आदमी थाने नही जाना चाहता कारण है पुलिस का व्यवहार । पुलिस अधिक्षक यानी एक आई पी एस यह समझता है कि देश उसके बाप का है और वह शासन करने के लिए पैदा हुआ है । यह ब्लाग मैं उन अधिकारियों तथा पुलिस जवानो  के लिए लिख रहा हुं जो आतंकवादियों के हाथों मारे जाते है , तकलीफ़ होती है देखकर -सुनकर लेकिन उससे भी ज्यादा कष्ट होता है जब नक्सल के नाम पर निर्दोष   को प्रताडना दी जाती है। अगर पकड में आने वाला सचमुच में नक्सलवादी है तब तो उसे  ईस तरह की यातना दी जाति है जिसे देख कर मानवता भी शर्मसार हो जाये। मैने बहुत सारे पुलिस वालों और पत्रकारों के विचार सुना , सबने नक्सलियों के साथ होने वाले जुल्म को , उनके द्वारा किये गये नरसंहार के परिप्रेक्ष्य में यथोचित ठहराने का प्रयास किया यानी tit for tat. पर क्या है उचित है ? एक चोर , डकैत , अपहरणकर्ता से बडा अपराधी वह नेता और अफ़सर हैं जो भ्रष्ट्राचार की कमाई से देश को लूट रहे हैं। ईनकी सजा क्या होनी चाहिये यह मैं आपके उपर छोडता हुं। मुझे ईन्तजार रहेगा आपके जवाब का।
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