महल्ला का गुंडा , देश का गुंडा , दुनिया का गुंडा

12 Dec 2010

महल्ला का गुंडा , देश का गुंडा , दुनिया का गुंडा .

 
देश की सीमा कि तरह गुंडो का भी अधिकार क्षेत्र होता है। जैसे महल्ले का गुंडा , एक मुहल्ले तक , देश का गुंडा एक देश तक और दुनिया का गुंडा पुरी दुनिया में अपना आतंक पैदा करके राज करना चाहता है। इन तीनों तरह के गुंडे सबसे ज्यादा नफ़रत प्रजातंत्र से करते हैं। मुहल्ले के गुंडो को तो आपने मुखिया, पार्षद और विधायक बनते देखा है देश के गुंडे को तरुण तेजपाल पर कहर ढाते तथा आपातकाल लगाते हुये भी आप देख चुके हैं। अब दुनिया के मुल्को ने एक ताकतवर की गुंडागर्दी को लगाम लगाने वाला प्रयास देखा। मेरे जैसे लोगों ने मौन रहकर अपना समर्थन दिया उस व्यक्ति को जो एक तानाशाह मुल्क चीन में इन्सानियत को जिंदा रखने की लडाई लड रहा है। लिउ झियाबो को नोबल  शांति पुरुस्कार २०१० से सम्मानीत किया गया। लिउ झियाबो चीन के जेल में ११ साल का कारावास झेल  रहे हैं। उनका गुनाह है चीन में मानवाधिकार एवं प्रजातंत्र की स्थापना के लिये संघर्ष करना नोबल पुरुस्कार के ईतिहास में ७५ साल बाद यह पहला मौका है जब पुरुस्कर् व्यक्ति या उसका कोई प्रतिनिधि , पुरुस्कार ग्रहण करने नही आया। लिउ झियाबो की पत्नी लिउ झिआ को भी उनके घर में नजरबंद कर दिया गया        एक खाली कुर्सी पर पुरुस्कार का  मेडल रखा गया। ७५ साल पहले हिटलर ने अपने देश के कार्ल वोन ओसिज्कि को १९३६ में नोबल पुरुस्कार ग्रहण करने से रोका था। कार्ल वोन ओसिज्कि सैन्यकरण के विरोधी थें।   और वह पहला मौका था जब पुरुस्कार ग्रहण करने वाला या उसका कोई भी प्रतिनिधि उपस्थित नही हुआ था। नार्वे पर हिटलर ने १९३९ में , दुसरे विश्व युद्ध के समय कब्जा कर लिया तथा नोबल पुरुस्कार समिति के तीन सदस्यों को भागकर अपनी जान की रक्षा करनी पडी थी १९४० से १९४५ तक कोई भी नोबल पुरुस्कार नही देकर नोबल पुरुस्कार समिति ने अपने सम्मान को बचाये रख। आज चीन ने हिटलर का दुसरा रुप दिखाया भारत के साम्यवादियों के लिये भी अपने गिरेबां में झाकने का वक्त है हालांकि भारत के साम्यवादी   वैचारिक द्ररिद्रता के शिकार हैं।  उनकी आदत है अपनी गलती को दुसरे की गलती के आधार पर उचित ठहराना यह बिल्कुल वैसा हीं है की एक चोर अपने बचाव में यह तर्क दे की दुसरे चोर को सजा नही मिली तो मुझे क्यों अभी जी मामले में भी कांग्रेस का रवैया यही है। दुनिया के तकरीबन १९ देशों ने पुरुस्कार समारोह का बहिस्कार किया। अधिकाश देशों ने चीन से संबंध बिगडे इस कारण से पुरुस्कार समारोह का बहिष्कार किया बहिष्कार करने वाले देशों को प्रभुतासंपन्न देश कहलाने का कोई अधिकार नही है। वस्तुत: ऐसे सभी देश कायर और डरपोक मुल्क की श्रेणी में गिने जायेंगें।   बहिस्कार करनेवाले देशों की सूची पर नजर डालने से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है की मुस्लिम कट्टरपंथी और साम्यवादी सै्द्धांतिक तौर पर एक दुसरे के पुरक हैं चीन के अलावा रुस , कजाकस्तान , कोलंबिया, तुनिशिया, सउदी अरब, पाकिस्तान, सर्बिया, ईराक , ईरान, वियतनाम, अफ़गानिस्तान, वेनजुएला, फ़िलीपिंस, मिस्र , सुडान, उक्रेन, क्युबा और मोरक्को। देशों की सूची देखकर कोई भी समझ सकता है की मुस्लिम कट्टरपंथ और साम्यवाद के रिश्तों पर इस समारोह का बहिस्कार करने वाले देशो का मानवाधिकार के प्रति रुख जग जाहिर है बहिष्कार करने वाले देशों में हमारा पडोसी पाकिस्तान भी है यह एक अच्छा मौका था हिन्दुस्तान के बुद्धिजिवियों के लिये , पाकिस्तान से और खासकर के काश्मीर में मानवाधिकार हनन की बात करने वाले हुरियत और अरुंधती राय जैसे लोगों से यह पुछने का कि मानवाधिकार का हनन कौन करता है , भारत या पाकिस्तान मैने पाकिस्तान के समाचार पत्रों से पुछा है , कहां गये पाकिस्तानी मानवाधिकार के संरक्षक ।।यह भी सत्य है की भारत में भी मानवाधिकार का हनन होता है। लेकिन यहां उसके विरोध में आवाज उठाने वालों की कमी नही है।  महल्ले के लोगों के अंदर अपने आतंक से भय पैदा करके डराने वाला महल्ला के गुंडे जैसा हीं चीन भी दुनिया का गुंडा है। उसी प्रकार देश में निर्दोषों की हत्या करने वाला देश का गुंडा है। जबर्दस्ती बंद करवाने वाला भी देश का गुंडा है। मैं तो इस लडाई का हिस्सा  हूं हीं , आप भी इस संघर्ष में शामिल हो सकते हैं बस जब भी कोई साम्यवादी मिले उसे चीन की इस गुंडागर्दी को याद दिलायें। अमेरिका भी पाक साफ़ नही है विकलिक्स पर प्रतिबंध लगाकर उसने भी अपनी गुंडागर्दी दिखाने का प्रयास किया फ़िर भी वह चीन से बहुत हीं अच्छा है आज भी विकलिक्स का कार्यालय अमेरिका में हीं है। this is the time to show your protest . I have e-mailed Chinese embassy to lodge my protest . I appeal you to lodge your protest too.   email :  chinaemb_in@mfa.gov.cn   बाकी बाते बाद में।
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2 टिप्पणियाँ:

Arun sathi said...
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Arun sathi said...

भारत के साम्यवादियों के लिये भी अपने गिरेबां में झाकने का वक्त है । हालांकि भारत के साम्यवादी वैचारिक द्ररिद्रता के शिकार हैं। उनकी आदत है अपनी गलती को दुसरे की गलती के आधार पर उचित ठहराना ।



एकदम सही कहा, पर भारत ने हिम्मत दिखाई. प्रेरक आलेख. आभार..

 
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