खबरदार: ईमानदार नही बन सकते उम्मीदवार
टिकट की दौड में कमीशनखोर सबसे आगे
नही मिलेंगें अब लोहिया, कर्पूरी , शास्त्री
बिहार विधानसभा चुनाव में टिकटों कि दौड में शामिल चेहरों को देखकर यह कहने का जी करता है कि बहुत हुआ बंद करो प्रजा्तंत्र का यह नाट्क, पलट दो एकबार इतिहास को, बुलालो अंग्रेजो को ,सौप दो उनको राज,। कल्पना स्वराज कि , मिला भ्रष्टराज । सभी पार्टियों के कार्यालय के बाहर द्स लखिया ग़ाडियां , नारे लगाते चमचे और टिकट दिलाने वाले दलाल यही ifj–‘; है चुनाव पूर्व का। दावेदारों से पुछो क्यों बनना चाहते विधायक और भी रास्ते हैं देश सेवा के । यकिन मानिए वह आपको मारे या न मारे उसके चमचे जरुर आपका भुर्ता बना देंगें । अब रही इमानदारों कि टिकट कि दावेदारी तो पूर्व सतर्कता आयुक्त ने स्वीकार किया है कि देश की ३० प्रतिशत आबादी भ्रष्ट हो चुकि है बाकी ५० प्रतिशत होने के कगार पर है। ईमानदार के पास द्सलखिया गाडी तो होगी नही ईसलिए गलती से सकुचाते हुए टिकट की दावेदारी की तो सबसे पहले पुछा जाएगा कैसे जितोगे। पैसा कहा से लाओगे। तुम्हारे साथ तो एक भी आदमी नही आया है। पार्टी में भी तुम्हारा समर्थन नही है। बात भी सही है। पार्टी में तो वही लोग छाए हुए है जो छुटभये नेताओं और गरीब झंडा ढोने वाले कार्यकर्ताओं को अक्सर मुर्गा –शराब की दावत अच्छे – अच्छे होट्लों में देते हैं। टिकट कि दौड में मुखिया, मुखियापति, नगरपालिका/ जिला परिषदों के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष है और ये सभी कमीशनखोरो की जमात से आते है। नगर पालिका/ नगर परिषद के ठेके से लेकर आंगनबाडी सेविका एवं पंचायत शिक्षकों की बहाली तक हर जगह फ़ैले भ्रष्टाचार कि मुल वजह यही हैं। अपने पूर्व के अंक में हमने कहा था कि अगर सी०बी०आई० जैसी संस्था से जांच हो तो अधिकांश स्थानीय निकायों के प्रतिनिधि जेले के सलाखों के पीछे नजर आयेंगें। अब आप हीं बतायें क्या कोई ईमानदार बन सकता है उम्मीदवार ?
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