काश प्याज २०० रुपये किलो हो जाय।
मधयमवर्गीय लानत है तुम्हारी हाय तौबा पर । प्याज की किमत क्या बढी , लगा की घर में खाना हीं बंद हो गया । हे स्वार्थियों कुछ तो उन किसानो के बारे में सोचो जो ३० बीघा खेत रखकर भी एक चपरासी से बदतर जिंदगी गु जारने के लिये बाध्य है। ३० बीघा जमीन की कीमत अगर ३ लाख रुपयेबीघा भी आंकी जाय तो ९० लाख रुपये होती है। लेकिन ९० लाख रुपये की संपति वाला वह किसान अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा भी नही दे सकता । कारण है कि उसे २ लाख रुपये भी साल भर की खेती से नही उपार्जित हो पाता है। प्याज खाये बिना कोई मर नही सकता । प्याज , गेहूं –चावल नही है। न हीं आम आदमी का आलू है। मैने अपने घर में कह दिया, अभी प्याज खाना बंद कर दो लेकिन प्याज की कीमत बढने पर हाय – तौबा मत मचाओ । प्याज जितना हीं अधिक निर्यात होगा , देश और उसकी आत्मा किसान की स्थिति अच्छी होगी । हे बेशर्मों अगर हाय तौबा हीं मचाना है तो सरकारी कर्मचारियों और विधायको-सांसदों की वेतन बढने पर मचाओ। देश की सबसे बडी समस्या तुम लोगों की मध्यमवर्गीय मानसिकता है जो अपने स्वार्थ के अलावा कुछ सोचती हीं नही।
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