आज रायपुर की अदालत ने डाक्टर बिनायक सेन जो नक्सलवाद ग्रसित छतीसगढ के आदिवासी क्षेत्रों में चिकित्सालय चलाने के लिये पुरी दुनिया में ख्याति अर्जित कर चुके हैं , को देशद्रोह के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा सुनाई । डाक्टर सेन पर अभियोग था की जेल में बंद एक नक्स्लवादी की चिकित्सा करते समय , उसके द्वारा दिये गये एक पुर्जी को बाहर पहुंचाया था। डाक्टर सेन ने किसी भी गलत काम से ईंकार किया था। डाक्टर सेन को २००७ में गि्रफ़्तार किया गया था। उनकी रिहाई के लिये दुनिया के २२ नोबल प्राईज विजेताओं ने भारत की सरकार से अपील की थी । सुप्रीम कोर्ट द्वारा उन्हें जमानत दी गई थी। उनके उपर देशद्रोह का अभियोग लगा था। हमारे देश के कानून की किताब आईपीसी के चैप्टर VI देश के विरुद्ध अपराधों से संबंधित है। बडा हीं अजीब है इसके प्रावधान , खासकर के धारा १२३ और १२४ ए । इन प्रावधानों के तहत किसी भी व्यक्ति को जो सही बात भी कह रहा हो जेल भेजा जा सकता है, १२३ में यह लिखा गया है की कोई भी व्यक्ति कोई ऐसी हरकत करता है जिससे यह जाहिर हो की भारत के सरकार के खिलाफ़ युद्ध से संबंधित कोई जानकारी वह छुपा रहा है या उसके द्वारा उस जानकारी के नही उजागर करना , भारत के सरकार के खिलाफ़ युद्ध का कारण हो सकता है, । दुसरी धारा है १२४ ए , ईसके अनुसार अगर कोई व्यक्ति बोलकर, लिखकर, इशारे या दिखाई देने वाले तरीके से प्रदर्शित करता हो या अन्य तरीके से , भारत की सरकार से लोगो का मोहभंग करने का प्रयास करता है, उसे आजीवन कारावास की सजा होगी। मैं समझता हूं की १२३ और १२४ए के प्रावधानों के अनुसार सच बोलने और भारत की सरकार के द्वारा किये जा रहे गलत कार्यों की आलोचना करने वाला हर भारतीय देशद्रोही है। मैं खुद को उन देशद्रोहियों की श्रेणी में पाता हूं , क्योकिं मैं बहुत सारी गलत बाते जो इस देश की सरकार करती है, उसके खिलाफ़ हूं। अभी कुछ दिन पहले गया जिले के के बोधगया के ढाबानुमा होटल से सीआरपीएफ़ के द्वारा चार लोगो को दिन दहाडे उठाकर , कैंप में ले जाकर , चार दिनोंतक पुछताछ के नाम पर यातना दी गई। मैने गया के जिलाधिकारी के द्वरा चुनाव के दरम्यान बुलाये गये प्रेस कांफ़्रेस में एस एस पी अमित लोढा से पुछा, उन्होने गिरफ़्तारी से ईंकार किया लेकिन सीआरपीएफ़ के कैंप मे रखकर पुछताछ किये जाने को अमित लोढा ने जायज ठहराया। आप सभी जानते हैं देश के कानून के अनुसार किसी को भी चार दिनों तक बिना एफ़ आई आर दर्ज किये , पुछ्ताछ के लिये रखना, गैरकानूनी तरीके से बंधक बनाकर रखने का अपराध है। खैर मेरी आदत में शुमार है गलत के खिलाफ़ आवाजे उठाना वह भी बिना किसी अपेक्षा के। अब मैं चर्चा करता हूं उस जज के जिसने सजा सुनाई । पहली बात जज या वकिल बनने के पहले समझ जाईये की आपके अंदर क्या गुण होना चाहिये। एक – कानून का ग्यान , दुसरा – अनुभव और तिसरा सबसे महत्वपू्र्ण है। सहज-ग्यान या स्वभाविक बुध्दि . In English, legal knowledge, experience and instinct. दु्र्भाग्य या यों कहिये की सबसे दुखद बात यह है की देश के नब्बे प्रतिशत , चाहे निचली अदालतों में हो या सर्वोच्चय न्यायालय मे, उनके पास सहज-न्यायायिक बुद्धि का अभाव है। यह शिक्षा से नही आती बल्कि नैसर्गिक होती है। आज देश की जेलों में ५० प्रतिशत से ज्यादा सजायाफ़्ता निर्दोष है । उनकी सजा को सर्वोच्चय न्यायालय ने भी बहाल रखा है। अब उन जजों को जिन्होने निर्दोषों को सजा सुनाई उन्हें अपराधी न कहना अपने जमीर को झुठलाना है। कानून की किताबों में एक ्प्रावधान है decision taken in good faith. और इस गंदे प्रावधान के कारण निर्दोष को फ़ांसी की सजा देनेवाले को भी कुछ नही हो सकता . हालांकि गुड फ़ेथ की एक व्याख्या लिमिटेशन एक्ट में है , परन्तु विवेकहीन न्यायाधीश यह मानकर चलते हैं की सिर्फ़ घुस लेकर या किसी के दबाव में लिया गया फ़ैसला हीं उस श्रेणी में आता है। मैने रिटार्यड भारत के मुख्य न्यायाधीश के जी बाला कर्ष्णन को गैस विवाद के मामले में मुकेश अंबानी के पक्ष में गये फ़ैसले को सबसे खराब फ़ैसला मानता हूं। मैने केजीबी के बारे में लिखा है की वह भ्रष्ट था। रिटा्र्यड होने के पहले हीं उसने जुगाड बैठा लिया था और तुरंत उसे मानव अधिकार आयोग का अध्यक्ष बना दिया गया । खैर दोस्तो आगे आओं डाक्टर बिनायक सेन के समर्थन में आवाज उठाओ। मैं छ्तीसग़ढ के उस विवेकहीन जज के फ़ैसले को बहुत हीं गलत मानता हूं। वस्तुत: उसे जज नही होकर पुलिस अधिकारी होना चाहिये था। डाक्टर बिनायक सेन आपको मेरा शत-शत नमन । हिन्दुस्तान को आप जैसे लोगों की जरुरत है । मैने इस फ़ैसले को मानवाधिकार का हनन माना है।
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1 टिप्पणियाँ:
सही कहा आपने
बिनायक सेन के साथ हम भी खडे है
उनको समर्पित एक मेरी रचना..
http://chouthaakhambha.blogspot.com/2010/12/blog-post_25.html
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