गया के नागरिक संगठनों ने मानवाधिकार हनन करने वाले एसएसपी को सम्मानित किया ।
गया बिहार के प्रमुख शहरों में से एक है । अन्य जिलों की तरह यहां भी विभिन्न नागरिक संगठ्न है , इन संगठनों का एकमात्र कार्य अधिकारियों की चमचागिरी है । चमचागिरी के रास्ते अच्छी खासी आमदनी तथा आम लोगों पर रुआब भी कायम हो जाता है । गया के नागरिक संगठनो की चमचागिरी तथा उन संगठनों से जुडे लोगों पर कभी नही लिखा , कारण था तकरीबन सभी का परिचित होना । लेकिन जब इन संगठनों ने गया के निवर्तमान एसएसपी अमित लोढा को भावभीनी विदाई समारोह का आयोजन किया तो मैं लिखने के मजबुर हो गया । अमित लोढा मानवाधिकार के हनन के दोषी हैं । विगत वर्ष २०१० के नवंबर माह में बोधगया स्थित पर्यटक स्थल से एक ढाबानुमा होटल से दिनदहाडे सीआरपीएफ़ के द्वारा चार व्यक्तियों को उठाकर के सीआरपीएफ़ कैंप में लेजाकर , बंधक बनाकर यातना दी जा रही थी । लगातार चार दिनों तक उनको सीआरपीएफ़ कैंप में रखकर पुछताछ की गई । मैने गया के जिलाधिकारी संजय सिंह के द्वारा बिहार विधान सभा चुनाव के दरम्यान १५ अक्टूबर को बुलाये गये प्रेस कांफ़्रेस में एसएसपी अमित लोढा से पुछा था की क्या सीआरपीएफ़ के कैंप में किसी को चार दिनों तक गिरफ़्तार करके रखा जा सकता है ? अमित लोढा ने जवाब में कहा था की उनको गि्रफ़्तार नही किया गया है बल्कि कैंप में रखकर पुछताछ की जा रही है । कैप में रखकर पुछताछ को भी अमित लोढा ने कानूनन सही ठहराया था । चार दिनों तक गिरफ़्तार करके रखने की बात पर अमित लोढा ने कहा था की उनसे सिर्फ़ पुछताछ की जा रही है , गिरफ़्तारी नही की गई है तथा उनको बीच –बीच में छोड भी दिया जाता है । हालांकि छोडनेवाली बात पुर्णत: गलत थी । कानूनन भी २४ घंटे से ज्यादा किसी को बंद करके पुछताछ नही कि जा सकती और किसी भी हालत में सीआरपीएफ़ के कैंप में पुछताछ नही की जा सकती । उक्त प्रेस कांफ़्रेस में सिर्फ़ दो अखबार हिंदुस्तान के सतीश मिश्रा और दैनिक जागरण के पंकज ने एक दो प्रश्न चुनाव के दरम्यान अर्द्ध्सैनिक बलों की ्तैनाती पर पुछे थें । उन दोनो द्वारा पुछे गये प्रश्न के बारे में ब्रिफ़िंग के दौरान हीं जिलाधिकारी बता चुके थें । सभी को मालूम था बोधगया से चार आदमियों को उठाकर सीआरपीएफ़ कैंप में रखकर यातना देने और पुछताछ करने की बात लेकिन किसी ने हिम्मत नही की पुछने की । खैर उसी अमित लोढा को गया के नगरिक मंच तथा मित्र मंडली नामक संगठन ने भावभीनी विदाई दी । नागरिक मंच की ओर से विमलेंदु चैतन्य ने मोर्चा संभाला था तो मित्र मंडली नाम के संगठन की बागडोर वीबीसीएन के निदेशक रंजन कुमार के हाथ में थी । दोनो मेरे अत्यंत करीबी है , साथ-साथ उठना बैठना रहा है । विमलेंदु आजतक और एनडीटीवी के स्ट्रिंगर है तथा गया का प्रथम तकरीबन १५ वर्ष पहले स्थानीय न्यूज़ चैनल अबतक को प्रारंभ करने का श्रेय उन्हें हासिल हैं । वीबीसीएन भी स्थानीय न्यूज चैनल है , गया के लोगों में लोकप्रिय भी है । विमलेंदु तथा रंजन दोनो पत्रकारिता के उद्देश्य से इस क्षेत्र में आये थें । विमलेंदु अभी भी संघर्ष कर रहें है लेकिन रंजन ने एक मुकाम हासिल कर लिया है , अधिकारियों से संपर्क का फ़ायदा रंजन को मिला है । आज रंजन करोडो में खेल रहें हैं । कई बार मेरे संघर्ष में दोनो ने नैतिक समर्थन दिया है , इसलिये लिखना मेरे लिये बहुत कठिन काम था । लिखने का उद्देश्य भी उनके अंदर बची हुई मानवता को जिंदा रखना है न की उन्हें नीचा दिखाना । अब उन चेहरों को दिखाता हूं जो शामिल थें विदाई देने में । डा० फ़रासत हुसैन , अपने पेशे से ज्यादा अधिकारियों की चमचागिरी करने में मशगुल रहते हैं । चमचागिरी का आर्थिक लाभ भी इनको मिला । डा० अभय सिंबा , आंख के अच्छे डाक्टर है फ़ालतू चीजों से कोई मतलब नही है । दोस्ती निभाने और थोडा नाम के लालच में शामिल थे समारोह में । तिसरे थें शिवबचन सिंह पेशे से अधिवक्ता , होमगार्ड , नागरिक मंच जैसे विभिन्न संगठनों से जुडे रहना इनकी आदत तथा उपरी कमाई का जरिया है । अधिकारियों से मिलजुलकर काम निकालना और पैरवी करके दलाली करना यही इनको पसंद है । पब्लिक में रौब जमाकर अपना कद बडा करने की फ़िक्र में ज्यादा रहते हैं । अधिकारियों की चमचा गिरी का फ़ायदा मुकदमें वगैरह में भी मिल जाता है । दु्कानदारों से कपडे , मिठाई वगैरह मुफ़्त में हासिल कर लेते हैं । एक और डाक्टर ए एन राय थें , दिल के बहुत बडे डाक्टर , करोडो की संपति , आयकर विभाग की नजर इनपर कभी नही पडती है । फ़िस महंगा है । एक और डाक्टर रतन भी थें , पति –पत्नी दोनो डाक्टर है , अपना क्लिनिक है , दोनो हाथ से पैसा बटोरने में लगे हैं । पत्रकार बिरादरी से हिंदुस्तान गया के प्रभारी सतीश मिश्रा , आज के डा० सरदार सुरेन्द्र, छायाकार श्याम भंडारी । सतीश मिश्रा को नया चस्का लगा है अधिकारियों की चमचागिरी का। सरदार सुरेन्द्र दलाल नही हैं लेकिन थोडी बहुत पैरवी ्वह भी जायज करने के आदि है, क्यों जरुरत पडी एक मानवाधिकार का शोषण करने वाले एसएसपी का सम्मान करने की नही पता । श्याम भंडारी अच्छे छायाकार हैं , सरकारी विभाग की कर्पार बनी रहे, सरकारी स्तर पर छपने वाली स्मारिका वगैरह में काम मिलता रहे यह एक कारण था उनका चमचागिरी करने का । सेवानिवर्त् राज्य के उप सचिव स्तर के राय मदन किशोर । राय मदन किशोर सेवानिवर्तद हो चुके हैं । एसएसपी से उच्च पद से रिटायर्ड हुये हैं , सामाजिक जिवन जिने और रिटायरमेंट के बाद कुछ करने की चाह रखते हैं , कई बार मुझसे इस विषय पर चर्चा हो चुकी है , शायद रंजन जी और उनके ग्रुप के दबाव के कारण शामिल हो गये लेकिन यह गलत किया । पूर्व में भी गया के स्वनाम धन्य पत्रकार बंधु एक महा भ्रष्ट अधिकारी के पी रमैया का सम्मान कर चुके हैं । जिलाधिकारी के प्रेस कांफ़्रेस में मेरे द्वारा पुछे गये प्रश्न को एक पत्रकार बंधु ने अपने मोबाईल कैमरे से रेकार्ड किया था । सिर्फ़ आडियो रेकार्डिंग है । इस आडियो क्लिप के अंत में मेरे द्वारा पुछा गया प्रश्न और एसएसपी अमित लोढा का वह जवाब है जिसमें सीआरपीएफ़ के कैंप में चार दिन तक की गई पुछताछ को उन्होने जायज ठहराया है ।
बाकी बाते बाद में
गया बिहार के प्रमुख शहरों में से एक है । अन्य जिलों की तरह यहां भी विभिन्न नागरिक संगठ्न है , इन संगठनों का एकमात्र कार्य अधिकारियों की चमचागिरी है । चमचागिरी के रास्ते अच्छी खासी आमदनी तथा आम लोगों पर रुआब भी कायम हो जाता है । गया के नागरिक संगठनो की चमचागिरी तथा उन संगठनों से जुडे लोगों पर कभी नही लिखा , कारण था तकरीबन सभी का परिचित होना । लेकिन जब इन संगठनों ने गया के निवर्तमान एसएसपी अमित लोढा को भावभीनी विदाई समारोह का आयोजन किया तो मैं लिखने के मजबुर हो गया । अमित लोढा मानवाधिकार के हनन के दोषी हैं । विगत वर्ष २०१० के नवंबर माह में बोधगया स्थित पर्यटक स्थल से एक ढाबानुमा होटल से दिनदहाडे सीआरपीएफ़ के द्वारा चार व्यक्तियों को उठाकर के सीआरपीएफ़ कैंप में लेजाकर , बंधक बनाकर यातना दी जा रही थी । लगातार चार दिनों तक उनको सीआरपीएफ़ कैंप में रखकर पुछताछ की गई । मैने गया के जिलाधिकारी संजय सिंह के द्वारा बिहार विधान सभा चुनाव के दरम्यान १५ अक्टूबर को बुलाये गये प्रेस कांफ़्रेस में एसएसपी अमित लोढा से पुछा था की क्या सीआरपीएफ़ के कैंप में किसी को चार दिनों तक गिरफ़्तार करके रखा जा सकता है ? अमित लोढा ने जवाब में कहा था की उनको गि्रफ़्तार नही किया गया है बल्कि कैंप में रखकर पुछताछ की जा रही है । कैप में रखकर पुछताछ को भी अमित लोढा ने कानूनन सही ठहराया था । चार दिनों तक गिरफ़्तार करके रखने की बात पर अमित लोढा ने कहा था की उनसे सिर्फ़ पुछताछ की जा रही है , गिरफ़्तारी नही की गई है तथा उनको बीच –बीच में छोड भी दिया जाता है । हालांकि छोडनेवाली बात पुर्णत: गलत थी । कानूनन भी २४ घंटे से ज्यादा किसी को बंद करके पुछताछ नही कि जा सकती और किसी भी हालत में सीआरपीएफ़ के कैंप में पुछताछ नही की जा सकती । उक्त प्रेस कांफ़्रेस में सिर्फ़ दो अखबार हिंदुस्तान के सतीश मिश्रा और दैनिक जागरण के पंकज ने एक दो प्रश्न चुनाव के दरम्यान अर्द्ध्सैनिक बलों की ्तैनाती पर पुछे थें । उन दोनो द्वारा पुछे गये प्रश्न के बारे में ब्रिफ़िंग के दौरान हीं जिलाधिकारी बता चुके थें । सभी को मालूम था बोधगया से चार आदमियों को उठाकर सीआरपीएफ़ कैंप में रखकर यातना देने और पुछताछ करने की बात लेकिन किसी ने हिम्मत नही की पुछने की । खैर उसी अमित लोढा को गया के नगरिक मंच तथा मित्र मंडली नामक संगठन ने भावभीनी विदाई दी । नागरिक मंच की ओर से विमलेंदु चैतन्य ने मोर्चा संभाला था तो मित्र मंडली नाम के संगठन की बागडोर वीबीसीएन के निदेशक रंजन कुमार के हाथ में थी । दोनो मेरे अत्यंत करीबी है , साथ-साथ उठना बैठना रहा है । विमलेंदु आजतक और एनडीटीवी के स्ट्रिंगर है तथा गया का प्रथम तकरीबन १५ वर्ष पहले स्थानीय न्यूज़ चैनल अबतक को प्रारंभ करने का श्रेय उन्हें हासिल हैं । वीबीसीएन भी स्थानीय न्यूज चैनल है , गया के लोगों में लोकप्रिय भी है । विमलेंदु तथा रंजन दोनो पत्रकारिता के उद्देश्य से इस क्षेत्र में आये थें । विमलेंदु अभी भी संघर्ष कर रहें है लेकिन रंजन ने एक मुकाम हासिल कर लिया है , अधिकारियों से संपर्क का फ़ायदा रंजन को मिला है । आज रंजन करोडो में खेल रहें हैं । कई बार मेरे संघर्ष में दोनो ने नैतिक समर्थन दिया है , इसलिये लिखना मेरे लिये बहुत कठिन काम था । लिखने का उद्देश्य भी उनके अंदर बची हुई मानवता को जिंदा रखना है न की उन्हें नीचा दिखाना । अब उन चेहरों को दिखाता हूं जो शामिल थें विदाई देने में । डा० फ़रासत हुसैन , अपने पेशे से ज्यादा अधिकारियों की चमचागिरी करने में मशगुल रहते हैं । चमचागिरी का आर्थिक लाभ भी इनको मिला । डा० अभय सिंबा , आंख के अच्छे डाक्टर है फ़ालतू चीजों से कोई मतलब नही है । दोस्ती निभाने और थोडा नाम के लालच में शामिल थे समारोह में । तिसरे थें शिवबचन सिंह पेशे से अधिवक्ता , होमगार्ड , नागरिक मंच जैसे विभिन्न संगठनों से जुडे रहना इनकी आदत तथा उपरी कमाई का जरिया है । अधिकारियों से मिलजुलकर काम निकालना और पैरवी करके दलाली करना यही इनको पसंद है । पब्लिक में रौब जमाकर अपना कद बडा करने की फ़िक्र में ज्यादा रहते हैं । अधिकारियों की चमचा गिरी का फ़ायदा मुकदमें वगैरह में भी मिल जाता है । दु्कानदारों से कपडे , मिठाई वगैरह मुफ़्त में हासिल कर लेते हैं । एक और डाक्टर ए एन राय थें , दिल के बहुत बडे डाक्टर , करोडो की संपति , आयकर विभाग की नजर इनपर कभी नही पडती है । फ़िस महंगा है । एक और डाक्टर रतन भी थें , पति –पत्नी दोनो डाक्टर है , अपना क्लिनिक है , दोनो हाथ से पैसा बटोरने में लगे हैं । पत्रकार बिरादरी से हिंदुस्तान गया के प्रभारी सतीश मिश्रा , आज के डा० सरदार सुरेन्द्र, छायाकार श्याम भंडारी । सतीश मिश्रा को नया चस्का लगा है अधिकारियों की चमचागिरी का। सरदार सुरेन्द्र दलाल नही हैं लेकिन थोडी बहुत पैरवी ्वह भी जायज करने के आदि है, क्यों जरुरत पडी एक मानवाधिकार का शोषण करने वाले एसएसपी का सम्मान करने की नही पता । श्याम भंडारी अच्छे छायाकार हैं , सरकारी विभाग की कर्पार बनी रहे, सरकारी स्तर पर छपने वाली स्मारिका वगैरह में काम मिलता रहे यह एक कारण था उनका चमचागिरी करने का । सेवानिवर्त् राज्य के उप सचिव स्तर के राय मदन किशोर । राय मदन किशोर सेवानिवर्तद हो चुके हैं । एसएसपी से उच्च पद से रिटायर्ड हुये हैं , सामाजिक जिवन जिने और रिटायरमेंट के बाद कुछ करने की चाह रखते हैं , कई बार मुझसे इस विषय पर चर्चा हो चुकी है , शायद रंजन जी और उनके ग्रुप के दबाव के कारण शामिल हो गये लेकिन यह गलत किया । पूर्व में भी गया के स्वनाम धन्य पत्रकार बंधु एक महा भ्रष्ट अधिकारी के पी रमैया का सम्मान कर चुके हैं । जिलाधिकारी के प्रेस कांफ़्रेस में मेरे द्वारा पुछे गये प्रश्न को एक पत्रकार बंधु ने अपने मोबाईल कैमरे से रेकार्ड किया था । सिर्फ़ आडियो रेकार्डिंग है । इस आडियो क्लिप के अंत में मेरे द्वारा पुछा गया प्रश्न और एसएसपी अमित लोढा का वह जवाब है जिसमें सीआरपीएफ़ के कैंप में चार दिन तक की गई पुछताछ को उन्होने जायज ठहराया है ।
बाकी बाते बाद में
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