http://madantiwary.blogspot.com/2011/03/blog-post.htmlशापित है भारत । आजादी की जंग में अपनी जान की बाजी लगाने वालों को कोई श्रेय नही मिला , कांग्रेस को आमजन की पार्टी बनानेवाले तिलक और गोखले भुला दिये गये , लेकिन अपने निकटतम को अध्यक्ष बनाने के लिये सुभाषचंद्र बोस को कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने के लिये बाध्य करने , कांग्रेस को बिरला और बजाज की रखैल बना देने वाले गांधी सारी मलाई मार गये , यह था आजादी के पहले के व्यवसायिक घरानों का षडयंत्र, उसका फ़ल भी मिला , आजादी के बात उनकी दौलत और व्यवसाय में हुई बढोतरी । आजादी के बाद , चन्द्रशेखर जैसा एक स््वाभिमानी शख्स सता में आया और राजनिती के व्यपारी शरद पवार को चुभ गया , उसे ले डूबा । रामदेव कालेधन की पैदाई्श हैं। यह एक दाव है , जुए का , एक आठवीं पास जो अच्छी तरह पुस्तक पढना नही जानता हो , उसके पक्ष में करोडो लोग वह भी पढे लिखे देश का नेता कैसा हो का नारा लगा रहे हैं , हालांकि मै उस तरह के लोगों को पढा-लिखा जाहिल मानता हूं, । योग्यता , शिक्षा , लोकप्रियता , प्रसिद्धि , ग्यान , सभी के अर्थ एक नही है , एक व्यक्ति शिक्षित , लोकप्रिय एवं ्प्रसिद्ध हो सकता है , लेकिन वह ग्यानी हो , जरुरी नही , वह इमानदार हो जरुरी नही । वैसे सारे लोग जिनकी कमाई का एक अच्छा खासा श्रोत व्यवसायिक घरानों की दया है , इसी श्रेणी के प्रसिद्ध , योग्य, शिक्षित एवं लोकप्रिय हैं, जो रामदेव के पक्ष में खडे है। मेरे विरोध का कारण है उसकी योगनुमा मदारी , जाओ कहीं से भी एक पतांजली योग की पुस्तक खरीदों जाहिलों , रामदेव से अच्छे मदारी बन जाओगे । बल्कि अगर गंभीरता से काम करोगे तो महान योग गुरु बन जाओगे। आज कुछ स्वार्थी व्यवसायिक घराने , रामदेव को आगे कर के इस देश पर फ़िर एक बार काबिज होना चाहते हैं। एक बिरला -बजाज की रखैल कांग्रेस से तो आजादी के ६० वर्ष से ज्यादा बित जाने के बाद भी हम मुक्त नहीं हो पाये है। आगे एक और जाल में फ़ासने की तैयारी है । खैर प्रजातंत्र का अर्थ हीं है , बहुमत यानी अगर गदहों की संख्या ज्यादा है तो गद्हों का शासन । रामदेव को कभी बाबा कहने की चाह हीं नही पैदा हूई । बाबा शब्द का इस्तेमाल हिंदी और भोजपुरी भाषी क्षेत्रों में अपने पिता के पिता के लिये किया जाता है , यानी दादा का पर्यायवाची है बाबा शब्द , गांव में और छोटे शहरो में पुजा –पाठ कराने वाले ब्राह्मणो के लिये भी बाबा शब्द का इस्तेमाल होता है , संत और साधुओं के लिये भी लोग बाबा शब्द का प्रयोग करते हैं। यानी वैसे व्यक्ति जो पुजनिया हो, जिनके पास धार्मिक उपलब्धि हो , वही बाबा कहे जाते हैं। राजनेताओं के लिये इसका प्रयोग नही होता , कुछेक अपवादों को छोडकर । रामदेव धार्मिक व्यक्ति नही हैं। योग इश्वर से जोडने की एक क्रिया है , सिर्फ़ व्यायाम नही । यह अध्यात्म की ओर ले जाने वाली पद्धति है । एक योगी आनंद रस में डुबा रहता है , ना काहु से दोस्ती ना काहू से बैर के धरातल पर जिता है । रामदेव अध्यात्म से बहुत दुर हैं, पास हो भी नहीं सकते , बहुत साधना की जरुरत है , उसके लिये । रामदेव ने कुछ योग की शारिरिक क्रियायें सीखी और समझ बैठे कि मैं पारंगत हो गया , अध्यात्म को समझने , जानने का कोई प्रयास इन्होने नही किया । हिंदुस्तान की अधिकांश आबादी हर जगह , ट्रैफ़िक से लेकर मैच देखने तक में , शर्ट कट पसंद करती है । रामदेव ने शार्टकट दिखाया योग का , वह शार्टकट एक मदारी से ज्यादा कुछ नही था । लोगों को रामदेव भगवान दिखने लगे। इधर देश में राजनेताओं पर अविश्वास बढता जा रहा था। राजनेता और दलों की विश्वसनियता समाप्त हो चुकी थी , २००६-२००७ से हीं घोटालों के खिलाफ़ आवाज उठने लगी थी । जो लोग इन घोटालों में शामिल थें उन्हे अहसास हो रहा था , आज नही तो कल उनकी गर्दन नपेगी , बचाव का उपाय एक हीं नजर आया, राजनितिक अस्थिरता पैदा कर के सरकार को गिराओ , उसके बाद किसी वैसे आदमी को सता में लाओ जिसे अपने इशारे पर नचाया जा सके , इधर रामदेव की मह्त्वकांक्षा परवान चढ रही थी , एक शख्स यह देख चुका था , जनता भेड है, उसे उल्लू बनाना आसान है । मदारी रुपी योग के माध्यम से जनता को मुर्ख बना रहे रामदेव के लिये यह मौका अच्छा था , राजनिती में आने का । योग में दवाइंयो का कोई स्थान नही होता है , जडी-बुटियों से इलाज की पद्ध्ति को आयुर्वेदिक चिकित्सा कहते हैं। योग और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति दोनो अलग –अलग क्षेत्र हैं। ्रामदेव को शार्ट कट की सफ़लता का मजा मिल चुका था , उसने एक और शार्ट कट अपनाया , वह था आयुर्वेदिक दवा के नाम पर फ़ालतू किस्म की ऐसी दवायें बनाना जिनमे प्रयोग तो जडी –बुटियों का होता है , लेकिन बनाने की पद्धति आयुर्वेद के मानकों के अनुकुल नही होती है । एक छोटा सा उदाहरण देता हू। आयुर्वेद में अगर किसी जडी को कुटना या पिसना है तो , उसे कसौटी पर करना पडता है , मशीनो का प्रयोग नही किया जा सकता , कारण मशीने गर्म हो जाति है , घर्षण से पिसने और कुटने का काम करती है , गर्म मशीने जडी-बुटियों के मौलिक गुणो को कम या समाप्त कर देती हैं। कसौटी पर भी लगातार कुटाई नही करनी है, प्रयास करना है , जडी-बुटियों को गर्म होने से बचायें। इन मानको का ध्यान रामदेव सहित कोई दवा कंपनि नही करती । रामदेव ने योग और दवा के बाद राजनितिक क्षेत्र में कदम रखा , जेल जाने की आशंका से भयभीत अधिकारियों और व्यवसायियों से लिये सबसे माकूल रामदेव नजर आयें। दोनो को एक दुजे की दरकार थी । व्यवसायिक घरानों ने अपने पे रोल पर रहने वाले प्रसिद्ध लोगो को रामदेव नाम केवलम गाने के लिये लगा दिया । ओ पी श्रीवास्तव , जेठमलानी , किरण बेदी, अण्णा हजारे , सहित जिवन भर घुस कमाने के बाद रिटायर्ड हो चुके ब्यूरोक्रेट्स को सामने लाया गया । और जैसे – जैसे भ्रष्टाचार के खिलाफ़ शिकंजा कसता गया , व्यवसायिक घरानों पर जांच शुरु होने लगी , रामदेव की मुहिम भी तेज होने लगी , भ्रष्टाचार के खिलाफ़ नही , सरकार के खिलाफ़ । हालांकि हम जैसा सोचते हैं हमेशा वैसा नही होता । रामदेव पर अपनी आय, संपति और उसके श्रोत बताने के लिये दबाव बढना शुरु हो चुका है , रामदेव को प्रोजेक्ट करने वाले भी कम शातिर नही है, उन्होने एक नया दाव खेला है , सरकार को चुनौती दी है , किसी भी एजेंसी से जांच करवाने की । जब रामदेव सभी सरकारी एजेंसी को भ्रष्ट मानते है, तो फ़िर इस चुनौती का अर्थ क्या है। कोई सरकार आज की तारीख में हिम्मत नही कर सकती , रामदेव के खिलाफ़ जांच करवाने की । रामदेव जनता को क्यों नहीं अनुमति देते अपनी संपति की जांच करने की । मुझे जांच करने की अनुमति दे और एक सप्ताह समय दे । उनकी आय , संपति और श्रोत का सारा ब्योरा सामने ला दुंगा । इस देश का कोई भी शख्स जिसकी संपति हजार करोड से ज्यादा है , यह दावा नही कर सकता की उसने यह इमानदारी से कमाया है । आज जरुरत थी , हर गांव , कस्बे और शहर में रह रहे वैसे बुद्धिजिवियों को आगे आने की जो प्रसिद्धि की दौड से दुर हैं, जो लोकप्रियता की रेस में नही शामिल हैं। उन्हें चिंता है मुल्क की , वे रामजेठमलानी नही है, अण्णा हजारे नही है , किरण बेदी नही है, अग्निवेश नही हैं, गोविन्दाचार्य नही है, मोहन भागवत नहि है । वे हैं रामेश्वर बाबु , जो लड जाते हैं ट्रैफ़िक पुलिस वाले से जब वह रिक्सा चालक पर डंडा चलाता है, वे हैं शफ़ी अहमद , जो गुसा ऊठते है , जब वीआईपी के लिये ट्रैफ़िक को रोका जाता है, वे हैं शिवनाथ मांझी जो रिक्सा चलाते हैं, लेकिन जब ईंदिरा आवास के लिये बीडीओ घुस मांगता है , तो दो घुट देशी का लेकर शुरु हो जाते है । हम और आप सब शामिल है । नकारने की शुरुआत करनी पडेगी । भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लडाई की बागडोर भ्रष्टाचारियों के हाथ में नही दि जायेगी । हमारा मुल्क शापित है , भगत सिंह , आजाद, सुभाष चन्द्र बोस , उधम सिंह , लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक की हसिल की गई आजादी को गांधी का नेतर्त्व एक नई गुलामी में बदल देता है , इस बार ऐसा नही होगा , श्राप से मुक्त करेंगे , भ्रष्टाचार की लडाई हम और आप लडेंगे। लड रहे हैं। भ्रष्टाचारियों को मलाई नही मिलेगी । एक संदेश , दुर रहो रामदेव , दुर रहो जेठमलानी , दुर रहो किरण बेदी, अण्णा हजारे, गोविंदाचार्य , अग्निवेश , भागवत । तु्म्हारी जरुरत नही है इस लडाई में , यह लडाई तुम्हारे खिलाफ़ भी है ।
बाकी बाते बाद में
1 टिप्पणियाँ:
LODE KE BAAAL.. BOSDIKE.. MAADARCHOD KUTTE KE LUND. TERI ITNI AUKAAT KAHAN JO BABA RAAMDEV KO GAALI DE..
TIWARI TU TIWARI NAHI BIMAARI HAI.. MAAN CHOD KE RAKH DENGE TERI HARAMI>..
Chup Chap Baith ja Lund ke Baal.
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