अ्खबारों का चुनावी पैकेज

18 Sept 2010


  •   नेताओं से लेते हैं मोटी रकम

  • समाचार के नाम पर करते हैं प्रचार

  • बिहार झारखंड के दो प्रमुख दैनिक कुख्यात है इसके लिए
बिहार के चुनाव आते हीं दैनिक अखबार वालों के चेहरें की चमक बढ गई है। कारण है राजनितिक दलों तथा नेताओं से मिलने वाली भारी भरभक राशि   जी हां चुनाव में अखबार का पैकेज बिकता है। उस पैकेज कि किमत अखबार के लोकप्रियता एवं सर्कुलेशन पर तय होती है। जो अखबार जितना ज्यादा बिकता है उसकी किमत उतनी हीं अधिक होती है इस चुनावी पैकेज में शामिल होता है बडे  हीं सलीके से सजाकर दल या उम्मीदवार विशेष के पक्ष में खबरें प्रकाशित करना यहां तक कि संपादकीय भी पक्ष में लिखे जाते हैं पुर्व केन्द्रीय मंत्री  हर मोहन धवन  ने लोकसभा चुनाव के उपरांत  चंडीगढ में प्रेस कांफ़्रेस करके उन सभी आखबारों का नाम उजाकर किया जिन्होनें उनसे   पैकेज कि पेशकश कि थी तथा मोटी रकम कि मांग कि थी २८ अप्रैल २००९ को मायावती कि रैली में भी उन्होनें अखबारों द्वारा पैकेज बेचने कि बात को जन सभा में उजागर किया था। इस प्रकरण  का सबसे दुखद पहलु यह है कि यह सभी अखबार हींदी भाषी क्षेत्र के हैं तथा अत्यंत ही प्रसिद्ध अखबारों में गिने जाते हैं इसमें से एक अखबार तो देश  के सर्वाधिक बिकने वाले दैनिक होने का दावा करता है तथा जिसने हाल हीं में न्यापालिका कि कमियों को बहुत हीं प्रमुखता से प्रकाशित किया था उक्त अखबार का नाम भी दैनिक शब्द से शुरु होता है। हरमोहन कि बात को झुठलाने कि हिम्मत किसी अखबार ने नही की। एक दुसरा अखबार जिसके उपर यह आरोप लगा है, उसका प्रकाशन  चुनाव पुर्व बिहार में शुरु होने जा रहा  है। उसके नाम के आगे भी दैनिक शब्द जुढा हुआ है। वर्तामान में सर्वाधिक बिकने वाले इस दैनिक ने तो शायद  सौदा  भी कर लिया क्योकिं १५-२० दिन पुर्व उक्त दैनिक ने अपने  संपादकीय में खुले रुप से नितिश कुमार को एक मौका देने की  अपील की  थी जहां तक इस समाचार की सत्यता की  बात है तो कोइ भी व्यक्ति www.travelbihar.com पर जाकरअखबारों की  असलियत पर क्लिक करके इसे देख  सकता है। मीडिया का ऐसा रुप पहले कभी नही देखा  शीर्षक से यह सच्चाई उजागर की  गई है। अखबारों द्वारा बेचे जाने वाले इस पैकेज में उम्मीदवार विषेश के पक्ष में ज्यादा से ज्यादा समाचार प्रकाशित करना , उसकी छोटीछोटी सभाओं को प्रमुखता देना तथा उसके विपक्षी की सभाओं का कवरेज कम करना शामिल होता है। और यह स्थानीय पत्रकार नहीं करते बल्कि प्रबंधक के स्तर पर यह कार्य किया जता है। स्थानीय संवादाता तो निरीह होता है भले हीं छुटभैये नेताओं  के लिए वह महान हो परन्तु अपनी नौकरी के लिए चाहते हुए भी प्रबंधक के दबाव में इस अनैतिक कार्य को अंजाम देता है




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1 टिप्पणियाँ:

Unknown said...

ap ke blog pr praha apne to chunawi pakage likh kr akhbaron ke dukhti ragon pr hath rakh diya.

 
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