ई वी एम में छेडछाड संभव है
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( साभार हरि के प्रसाद , प्रबंध निदेशक , नेट ईंडिया , हैदराबाद , जे एलेक्स हेल्डरमैन , प्रोफ़ेसर कम्प्युटर सांईस , मिशीगन विश्व विद्यालय । रोप गोंगग्रिज्प , टेक्नोलाजी एक्टिविस्ट , हालैंड । इन तीनों के द्वारा किये गये शोध कार्य पर यह लेख आधारित है। अपने शोध कार्य को दिनांक २८ अप्रील २०१० को शोधकर्ताओं ने प्रदर्शित भी किया । हरि के प्रसाद को मुम्बई पुलिस ने ई वी एम चोरी करने के आरोप में २१ अगस्त को गिरफ़्तार भी किया तथा उनपर दबाव डाला गया की शोध में प्रयुक्त होने वाला ई वी एम कैसे उनके पास आया , यह बतायें। १० अगस्त को भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने भी हरि के प्रसाद को बातचीत के लिये आमंत्रित किया था। मैने ई मेल के माध्यम से मी० रोप से संपर्क स्थापित किया । )
ई वी एम यानी वह मशीन जिसका उपयोग कागज रहित मतदान के लिये होता है। ई वी एम की सबसे बडी खामी यह है की मतों के हेरफ़ेर या चोरी हो जाने की स्थिति में चोरी का पता लगाना संभव नही है। जबकि कागज के मतपत्रों की चोरी या हेरा फ़ेरी होने पर , पुन: सभी मतपत्रों को निकाल कर देखा जा सकता है कि एक उम्मीदवार का मत कहीं दुसरे उम्मीदवार के खाते में तो नही जमा हो गया । ई वी एम किसी एक मतदान केन्द्र पर मिले उम्मीदवार के कुल मतों को हीं बता सकता है। एक एक मतो की गिनती की तकनीक ई वी एम में नही है। दुनिया के सबसे उन्नत तकनीक वाले मुल्क अमेरिका में कागज के मत पत्रों का उपयोग होता है। कैलिफ़ोर्निया , फ़्लोरिडा, आयर लैंड , नीदर लैंड और जर्मनी जैसे तकनीक के विकसित देशो ने ई वी एम का प्रयोग अपने यहां बंद कर दिया है। जबकी उन्नत देशों में प्रयुक्त होने वाले ई वी एम जिसे डी आर ई के नाम से जाना जाता है। विकसित देशों में प्रयुक्त होनेवाले डी आर ई यानी डायरेक्ट रेकार्डींग ईलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन अतयंत हीं उन्नत किस्म के थें। मतपत्रों के जमाने में मतपत्रों की लूट, बोगस वोटिंग, और गिनती में होनेवाली देर के कारण तकरीबन २० वर्ष पूर्व ई वी एम का छोटे – छोटे हिस्से में चुनाव कार्य में प्रयोग प्रारंभ हुआ । आज भारत में सभी चुनाव ई वी एम के द्वारा हीं होते हैं। भारत में दो सरकारी कंपनिया भारत ईलेक्ट्रोनिक लिमिटेड और ईलेक्ट्रोनिक कारपोरेशन आफ़ ईंडिया ई वी एम का निर्माण करती हैं। कोई भी गलत व्यक्ति जिसकी पहूंच ई वी एम तक हो , वह तकनीक की मदद से चुनाव के नतीजों को प्रभावित कर सकता हैं। ई वी एम में तकनीकी कमियां हैं। सर्वप्रथम इसकी कार्य प्रणाली कैलकुलेटर की तरह है।यह टी सी बी यानी वोटो के संग्रह के लिये कोडिंग की तकनीक ई वी एम में नही है। आन लाईन बैंकिंग का कार्य करने वाले जानते हैं की वहां ईन्क्रिप्शन और डिक्रिप्शन की व्यवस्था है , यानी आपके द्वारा दिया गया निर्देश और आपकी सुचना ईन्क्रिप्शन यानी कोड में बदल कर बैंक के सर्वर तक पहुंचता है और वहां बैंक का सर्वर उसे डीक्रीप्ट करके यानी कोड या संकेत को समझ जाता है कि आपने क्या आदेश दिया है। इस पुरी प्रक्रिया को एनक्रिप्शन और डिक्रिप्शन के नाम से जाना जाता है। अगर आपने किसी को १००० रुपया का भुगतान का निर्देश आन लाईन बैंक को दिया या रेलवे की टिकट आन लाईन खरिदा तो आपके द्वारा बैंक को दिया गया निर्देश कोड के माध्यम से बैंक के पास जायेगा और वहां बैंक का कम्प्युटर उस निर्देश को समझ कर आपके आदेश का पालन करेगा । आपके द्वारा दिये गये निर्देश को समझने की क्षमता सिर्फ़ बैंक के कम्प्युटर को हीं है। बाकी बाते बाद में
बहरी कोई भी व्यक्ति न तो आपका निर्देश समझेगा न हीं आपका पासवर्ड । अब मतो में फ़ेरबदल कैसे किया जा सकता है उसे विस्तर्त रुप से बताते हैं।
सर्किट बोर्ड बदलना : सबसे सरल तरीका है, ई वी एम के सर्किट बोर्ड को हीं बदल देना और उसकी जगह पर रिमोट से नियंत्रित होनेवाले सर्किट बोर्ड को लगाकर ई वी एम पर नियंत्रण स्थापित करना । लेकिन इस तरीके से की गई धोखाधडी को पकडना बहुत हीं आसान है।
मेमोरी चिप्स में फ़ेरबदल : वह डिवाईस यानी यंत्र जिसके अंदर आंकडों का संकलन होता है उसे मेमोरी चिप्स कहते हैं। यह एक बहुत छोटा सा पार्ट्स होता है। उस मेमोरी चिप्स में एक छोटा सा यंत्र लगाकर , यंत्र के उपर लगे रोटरी स्वीच के द्वारा यह सेट कर देना पडता है की किस नंबर के उम्मीदवार का मत चुराकर किसके खाते में डाल देना है और उसके बाद उस यंत्र को हटा लिया जा सकता है। अब मेमोरी चिप्स में जो भी आंकडा जमा होगा उसमें से एक निश्चित प्रतिशत मत एक उम्मीदवार के खाते से निकलकर दुसरे उम्मीदवार के खाते में जमा होता जायेगा । ई वी एम मे सबसे बडी खराबी है की एक-एक मत की गिनती की कोई व्यवस्था नही है। यह उम्मीदवार को मिले कुल आंकडो को हीं बतलाता है यानी मत चोरी होने की शिकायत के वावजूद पता लगाना मुश्किल है। यह यंत्र बहुत हीं छोटा है तथा शर्ट की उपरी जेब में रखा जा सकता है। ई वी एम कैप्चरिंग : ई वी एम मशीन के आने के बाद सबने समझा था की अब बुथ कैप्चरिंग का जमाना खत्म हो गया और मतदान में कोई गडबडी नही हो सकती है। यह सही है कि अब मतपत्रों की लूट नही होती है। न हीं दुसरे के नाम पर वोट डाले जाते हैं। लेकिन मतदान केन्द्र के पदाधिकारियों को मिलाकर बोगस वोटिंग खुब होती है। खैर हम तकनीक की चर्चा कर रहें हैं। अब एक नया खतरा पैदा हो गया है । जैसा की उपर बताया जा चुका है कि मतों के कोडिंग की कोई तकनीक ई वी एम में नही है। और ऐसी स्थिति में मेमोरी चिप्स में जमा वोटों के आंकडे में फ़ेरबदल आसान है। अभी ई वी एम में यह व्यवस्था है की एक मिनट में अधिकतम पांच वोट हीं डाले जा सकते हैं । लेकिन ई वी एम के प्रोग्राम में बदलाव कर या ट्रोजन हार्स वायरस के उपयोग से ई वी एम को कब्जा करने के बाद एक मिनट में पांच वोट वाली प्रणाली को खत्म करके सैकडो मतो की चोरी एक मिनट में की जा सकती है। ट्रोजन हार्स वास्तव में एक प्रोग्राम है। कम्प्युटर का उपयोग करने वाले जानते हैं की अचानक कम्प्युटर पर कोई विग्यापन आने लगता है वह पौप अप के रुप में भी होता है यानी अलग से एक छोटा सा विग्यापन आ जायेगा । आपके
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